Tuesday, May 11, 2010

''माँ''........


'माँ',
लग रहा होगा तुम्हे ये शब्द छोटा सा मगर,
मैं क्या करूँ,
इस शब्द की आगोश में ही तो ,
छिपा है जग ये सारा।
देखा तो था मैंने,
कुछ और शब्दों को, मगर,
मैं क्या करूँ,
ये शब्द ही मुझको मिला,
जो संसार में है सबसे प्यारा॥

जब रो रहा था मैं कभी,
तन्हाई के आगोश में,
आँचल मिला माँ का मुझे,
सिमटा था जिसमे जग ये सारा॥

बहका अगर मैं जब कभी,
इन रास्तों की ठोकरों से,
तब अंगुली दिखी माँ की मुझे,
बन के मेरा, बस एक सहारा॥

थक हार कर बैठा था मैं जब,
संसार की इन उलझनों से,
विश्वास उसने ही भरा,
जो छू सकूँ आकाश सारा॥

जीवन था मेरा एक कोरा कागज,
माँ, जो तुम न होती साथ में,
तुमने ही तो चलना सिखाया,
दी तुमने ही वक्तव्य धारा ॥

4 comments:

richa said...

hmm......rly very nice
described a mother very well.

monika. said...

really amazing..

anjali said...

awesum poem dude...gud job...

अनुराग राजपूत said...

@all--- dhanywaad :)