Tuesday, May 11, 2010

''माँ''........


'माँ',
लग रहा होगा तुम्हे ये शब्द छोटा सा मगर,
मैं क्या करूँ,
इस शब्द की आगोश में ही तो ,
छिपा है जग ये सारा।
देखा तो था मैंने,
कुछ और शब्दों को, मगर,
मैं क्या करूँ,
ये शब्द ही मुझको मिला,
जो संसार में है सबसे प्यारा॥

जब रो रहा था मैं कभी,
तन्हाई के आगोश में,
आँचल मिला माँ का मुझे,
सिमटा था जिसमे जग ये सारा॥

बहका अगर मैं जब कभी,
इन रास्तों की ठोकरों से,
तब अंगुली दिखी माँ की मुझे,
बन के मेरा, बस एक सहारा॥

थक हार कर बैठा था मैं जब,
संसार की इन उलझनों से,
विश्वास उसने ही भरा,
जो छू सकूँ आकाश सारा॥

जीवन था मेरा एक कोरा कागज,
माँ, जो तुम न होती साथ में,
तुमने ही तो चलना सिखाया,
दी तुमने ही वक्तव्य धारा ॥

Wednesday, January 13, 2010

चलो जो आज शब्दों को, इशारा दे दिया तुमने........

पतंगा वो शमा के प्यार में, फिर आज जल बैठा,

वो देखो आज तो सूरज भी, पश्चिम से निकल बैठा,

तेरी आँखों का काजल है, या फिर काला कोई जादू,

बदलना चाह था तुझको, कि मैं खुद ही बदल बैठा॥


तेरे लफ्जों की बारिश में, मैं खुद खामोश हो बैठा,

तेरी जुल्फों के साए में, मैं खुद के होश खो बैठा,

कि क्यों तुम यूँ चले आते हो, ख्वाबों और ख्यालों में,

तुम्हे ही सोचता रहता हूँ, अपनी सोच खो बैठा॥


तुम्हारे साथ होता हूँ , तो खुद को भूल जाता हूँ,

तुन्हारी ही हँसी को देखकर, मैं मुस्कुराता हूँ,

कि क्यों तुम छोड़ जाते हो, हमें यादों के साए में,

शमा यादों की तेरी मैं, खुद जलकर जलाता हूँ॥


मेरे हर लफ्ज को फिर से, सहारा दे दिया तुमने,

फँसे थे हम तो साहिल में, किनारा दे दिया तुमने,

कि देखो आज फिर से ये कलम , उत्साह से चल दी,

चलो जो आज शब्दों को, इशारा दे दिया तुमने॥