मैं हूँ इस ब्रम्हांड के चेतन जगत का जीव कोई,
मैं ही हूँ संसार के जंजाल में एक फंसा मोही ।
मैं हूँ वो मन जो मचल जाता तनिक सी बात में,
मैं हूँ वो भंवरा जो मंडराता है हर एक बाग़ में।
मैं हूँ वो संकल्प, जो डरता नही तूफ़ान से,
मैं हूँ वो विश्वास जो रहता सदा ही शान से।
मैं हूँ एक उल्लास जो हर पल रहेगा साथ में,
मैं हूँ एक उन्मुक्त पंक्षी इस फैले हुए आकाश में।
सोचता हूँ जब कभी ये प्रश्न की " मैं कौन हूँ?"
तो है सशंकित हृदय कि,
"मैं कौन हूँ, मैं कौन हूँ ,
मैं शब्द हूँ या मौन हूँ!"
"एक पुष्प कि हूँ महक मैं,
या हूँ पक्षियों कि चहक मैं!"
"संकल्प या विश्वास हूँ मैं,
मुस्कान हूँ या आस हूँ मैं!"
किन्तु उत्तर है यही इस प्रश्न का,
कि
"मन में कुछ संकल्प लेकर, जो अभी भी हैं अधूरे,
थोड़ा सा विश्वास लेकर, कर सकूं वो काम पूरे!
मैं हूँ एक तन्हा मुसाफिर, इस सकल संसार में,
हूँ नहीं एक भीड़ मैं , हूँ भीड़ के उस पार मैं!
उस सचल परमात्म का,तुच्छ सा एक भाग हूँ मैं,
प्रेम हूँ मैं हृदय का ,''अनुराग'' हूँ,''अनुराग'' हूँ मैं!!"
3 comments:
great!!!!!
awesome....
@avinash n monika-- dhanywaad :)
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