
कोई मुझको ये बतला दो।
मन में दीप जलाऊँ कैसे ,
जब वहीँ मुझे अंधियार मिले।
आशा की किरण जगाऊँ कैसे,
हर जीत में जब एक हार मिले।
जीवन के संघर्षों से तो,
काँटों पर चलना सीख लिया।
पर अगला कदम बढाऊँ कैसे,
जब मंजिल का धुंधला सार मिले॥
जब अपनी खुशियों को बांटा था,
एक भीड़ मिली थी तब मुझको।
अब अपने गम बतलाऊँ कैसे,
जब तन्हा सब संसार मिले॥
मन में उठती है एक पीर कभी,
कुछ प्रश्नों की हुंकारों से।
पर उनको मैं सुलझाऊं कैसे,
जब प्रश्नों का अम्बार मिले॥
जीवन के कोरे कागज पर,
लिखना तो मैंने सीख लिया।
पर अब ये कलम उठाऊँ कैसे,
जब न शब्द मिले, न सार मिले॥
सावन की रिमझिम सी बारिश,
मुझको भी अच्छी लगती है।
पर अब सावन बरसाऊँ कैसे,
जब पतझड़ ही हर बार मिले॥
मन में दीप जलाऊँ कैसे ,
जब वहीँ मुझे अंधियार मिले।
आशा की किरण जगाऊँ कैसे,
हर जीत में जब एक हार मिले।
जीवन के संघर्षों से तो,
काँटों पर चलना सीख लिया।
पर अगला कदम बढाऊँ कैसे,
जब मंजिल का धुंधला सार मिले॥
जब अपनी खुशियों को बांटा था,
एक भीड़ मिली थी तब मुझको।
अब अपने गम बतलाऊँ कैसे,
जब तन्हा सब संसार मिले॥
मन में उठती है एक पीर कभी,
कुछ प्रश्नों की हुंकारों से।
पर उनको मैं सुलझाऊं कैसे,
जब प्रश्नों का अम्बार मिले॥
जीवन के कोरे कागज पर,
लिखना तो मैंने सीख लिया।
पर अब ये कलम उठाऊँ कैसे,
जब न शब्द मिले, न सार मिले॥
सावन की रिमझिम सी बारिश,
मुझको भी अच्छी लगती है।
पर अब सावन बरसाऊँ कैसे,
जब पतझड़ ही हर बार मिले॥