आज उसकी एक हँसी से,
प्यार जब रुखसत हुआ,
उस बाबरी का बाबरापन,
न जाने कब मेरी ताकत हुआ॥
बंदिशें हमने लगाई थी तो,
इस दिल पर बहुत,
इश्क उनसे ऐ खुदा,
हमको न जाने कब हुआ॥
जिसकी बातों से हमें,
उलझन सी होती थी कभी,
आज उसकी हर अदा,
हर बात का कायल हुआ॥
हर बात का कायल हुआ॥
कहते तो हैं कुछ शख्स ये,
क़ि प्यार एक इल्जाम है,
पर आज इस इल्जाम में,
मैं फक्र से शामिल हुआ॥
प्यार का पैगाम हम,
देने ही वाले थे मगर,
ख्वाब था वो रात का,
और ख्वाब कब हासिल हुआ॥